छोटे छोटे सवाल –१२
श्रोत्रिय हाँ में 'हाँ' मिलाने ही जा रहा था कि असरार ने फिर कहा, "नहीं जी, एपाइंटमेंट में इसका क्या हाथ ? हाँ, एपाइंटमेंट के बाद अलबत्ता तकलीफ़देह साबित हो सकता है।" राजेश्वर ने कहा, "बहुत देखे हैं इस जैसे ! एक बार एपाइंटमेंट लेटर मिल जाए, फिर देखना। चूरन बनाकर फाँक जाऊंगा साले को। हमारी सियासत नहीं देखी अभी..."
और तभी बहुप्रतीक्षित क्लर्क, पवन बाबू लगभग लुड़कते हुए-से कमरे में आए। बातचीत का सिलसिला रुक गया। सब उनकी ओर देखने लगे। खासे मजेदार आदमी थे। लम्बाई-चौड़ाई एक-सी थी। गोलमटोल, छोटा कद। हाथ में एक फेहरिस्त लिए थे, जिसमें उम्मीदवारों के नाम लिखे थे। कमीज और नेकर पहन रखी थी। नाक पर आस्तीन का घिस्सा लगाते हुए पवन बाबू ने नेकर की जेब से लाल-नीली पेंसिल निकाली और उम्मीदवारों की हाजिरी लेनी शुरू की। -मुरारीमोहन माथुर ! -यस प्लीज। -रामस्वरूप पाठक! -यस प्लीज।
फिर पांडे, निगम, गिरीश, हरीश, रोहतगी, वर्मा सबका नम्बर आया और सब, जो अब तक चुप थे, 'यस प्लीज़' बोलते गए। फिर असिस्टैंट टीचर्स की बारी आई। -सुरेशचन्द्र सोत्री! -यस सर। -केशवपरसाद। -यस सर। -असरार अहमद! -यस प्लीज।